हमारे आदर्श

स्वदेश, स्वधर्म, स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राष्ट्रनायक परमवीर महाराणा प्रताप का उज्जलव प्रदीप्त चरित्र हमारा आदर्श है। मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के श्रीमुख से निःसृत - ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी’ और पुण्य प्रताप महाराणा प्रताप का यह उद्घोष कि ‘जो हठि राखे धर्म की तिहि राखै करतार’

हमारे सदा स्मरणीय बोध वाक्य हैं। शिक्षा परिषद् और महाविद्यालय को राष्ट्रनायक महाराणा प्रताप के नाम पर स्थापित करने के पीछे यही स्पष्ट उद्देश्य और प्रयोजन है कि इन संस्थाओं में अध्ययन-अध्यापन करने वाला युवा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान एवं कला की कालोचित शिक्षा ग्रहण करने के अलावा अपने देश और समाज के प्रति सहज निष्ठा और अटूट श्रद्धा का भी पाठ पढ़े।

महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक

शिक्षा के प्रसार को लोक जागरण और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का सशक्त माध्यम स्वीकार करते हुए ब्रह्मलीन पूज्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़े पूर्वी उ.प्र. के केन्द्र एवं अपनी कर्मस्थली गोरखपुर में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की शिक्षण संस्थाओं को संचालित करने हेतु महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्, की 1932 ई. में स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अविस्मरणीय नींव रखी। वर्तमान में महाराणा प्रताप शिक्षा के अन्तर्गत संचालित दो दर्जन से भी अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं में 25 हजार से भी अधिक छात्र-छात्रायें कला, विज्ञान, साहित्य और प्राविधिक विषयों में परम्परागत तथा आधुनिक विषयों की शिक्षा ले रहें हैं।

यदि महंत दिग्विजयनाथ जी की तहर अन्य धर्माचार्य भी देश, जाति एवं धर्म की सेवा में लग जाये तो पुनः जगद्गुरू के पद पर अधिष्ठित हो सकता है।

स्वातंर्त्यवीर वि.दा.सावरकर, गोरक्षपीठ गोरखपुर के महन्त श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज यों तो सारे विश्व के हितैषी थें पर हिन्दू धर्म तथा हिन्दू राष्ट्र के वे स्तम्भ थे।

महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय के संस्थापक

अपने वरेण्य गुरूदेव युगपुरूष महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज के बहुआयामी सपनों को साकार करने में निरन्तर संलग्न सामाजिक समरसता के उद्गाता राष्ट्रवादी राजनीति के पुरोधा और अप्रतिम धर्मयोद्धा ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने सन् 1932 में गुरूदेव द्वारा स्थापित ‘‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद’’ को अपनी निष्ठा, सुदीर्घकालीन तपस्या और अनुभव की पूंजी से उत्तरोत्तर समृद्ध, समुन्नत और प्रगतिशील रखते हुए 1957-58 में गोरखपुर में वर्तमान विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उदारतापूर्वक विलीनीकृत तत्कालीन महाराणा प्रताप महाविद्यालय को नये रंग रूप में पुनर्जीवित करते हुए गोरखपुर महानगर की आवश्यकता एवं मांग के अनुरूप रामदत्तपुर में महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय की स्थापना सन् 2006 में हुआ

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